आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज के चले जाने से, दिवंगत हो जाने से सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को जोड़ने का, जोड़े रखने का महान कार्य अब कौन करेगा? समाज को यह शिक्षा कौन देगा कि किसी भी साधर्मी भाई को ठुकराओ मत, सभी साधर्मियों को गले लगाना सीखो, और कर सको तो धर्म सिखाने का महान कार्य करोविद्वान का सम्मान करने वाले, पुरस्कृत करने वाले राजा भोज ने जब महाकवि कालिदास से कहा कि मेरी मृत्यु के सन्दर्भ में कविता बनाओ। तो उन्होंने एकदम इन्कार कर दियाकहा कि जब तक आप जिन्दा हैं, तब तक मैं ऐसी कविता कैसे बना सकता हूँ? ___ जब बात बहुत बड़ गई तो कालिदास को देश निकाला दे दिया गया। कालिदास देश छोड़कर चले गये, पर उन्होंने राजा भोज की मृत्यु पर कविता बनाना स्वीकार नहीं कियाराजा भोज वेश बदलकर परदेश में कालिदास के पास गये। जब कालिदास ने पूँछा - “कहाँ से आये हो?" तब उन्होंने कहा – “धारानगरी से'' तो कालिदास ने राजा भोज की कुशलता के समाचार पूँछे। उस राहगीर ने उन्हें बताया कि उनका तो स्वर्गवास हो गया। आपको नहीं मालूम? इतना सुनना था कि कालिदास के मुख से फूट पड़ा - अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती। पण्डिता खण्डिता सर्वे भोज राजा दिवंगते।। भोज राजा के स्वर्गवास हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गई; सरस्वती का आलम्बन समाप्त हो गया, वह निरालम्ब हो गई; सभी पण्डित खण्डित हो गये; क्योंकि पण्डितों का विद्वानों का मण्डन तो राजा भोज ही करते थे। यह सुन कर राजा भोज की आँखों में आँसू आ गये। उनके आँसु देखकर कालिदास ने उन्हें पहचान लिया और तत्काल कहा - अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती। पण्डिता मंडिता सर्वे भोज राजा भुवं जये।। भोज राजा के पृथ्वी पर जयवंत होने से धारा नगरी सदा ही आधार सहित रहेगी, सरस्वती को आलम्बन प्राप्त रहेगा और सभी पण्डित विद्वान मण्डित रहेंगे, सन्मानित रहेंगे, सुरक्षित रहेंगेइसीप्रकार विद्वानों का सन्मान करने वाले, विद्वानों को सम्मान दिलाने वाले, बिना किसी भेदभाव से सबको चाहनेवाले, उनका सहयोग करनेवाले, उनकी पीठ पर हाथ रखने वाले आचार्य श्री विद्यानन्दजी के चले जाने पर, दिवंगत हो जाने पर विद्वान निराश्रय हो गये हैं; निस्वार्थ भाव से उनकी पीठ पर हाथ रखनेवाला अब कोई नहीं हैभगवान महावीर का २५सौंवां निर्वाण महोत्सव, भगवान बाहूबली की विशालतम मूर्ति का सहस्त्राब्दी महोत्सव जैसे विशाल महोत्सव जिनकी क्षत्र छाया में सम्पन्न हुये - ऐसे विद्यानन्द महाराज आज हमारे बीच नहीं हैअतः अब हम सबकी सम्पूर्ण जैन समाज की यह जिम्मेवारी है कि हम सभी मिलजुल कर रहें और समाज को एक सूत्र में बाँधे रखें। महाराजजी ने एक बार मुझसे कहा कि स्वामीजी (आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजीस्वामी) तो गये। अब समयसार के विशेषज्ञ एक आप ही हैं। मैं आपसे समयसार सुनना चाहता हूँ। बताओ कब सुनाओगे, कहाँ सुनाओगे? मैंने कहा - "जब आप कहें, जहाँ आप कहें?'' इसप्रकार मेरी सुविधा और उनकी इच्छानुसार एक तारीख नक्की हो गई। महाराजजी, दो तीन आर्यिकायें और ५० विद्वानों की उपस्थिति में कुन्दकुन्द भारती में स्वाध्याय आरंभ हुआ, तब महाराज ने कहा - "डॉ. भारिल्ल प्रवचन करेंगे और हम सब सुनेंगे। कोई बीच में बोलेगा नहीं। कुछ पूंछना तो मैं पू गा।" जब मैं मंगलाचरण कर चुका तो महाराज ने कहा – “मुझे अमुक गाथा सुननी है।” मैंने वह गाथा निकाली और आगे-पीछे का सब सन्दर्भ बताकर उस पर व्याख्यान किया तो उन्होंने कहा कि अब अमुक गाथा सुननी हैइसप्रकार जब पहला प्रवचन समाप्ति पर था तो मैंने कहा - "महाराजजी, शाम के समय कौनसी गाथा सुननी है तो वे मुस्कराकर रह गये, कुछ नहीं बोलेजब शाम को व्याख्यान आरंभ हुआ तो फिर उन्होंने बताया किस गाथा पर प्रवचन करूँ। इसप्रकार उन्होंने लगभग प्रतिदिन ऐसा ही किया। वे मेरी परीक्षा करना चाहते थे। और मुझे लगा कि मैं पास हो गया हूँ; क्योंकि अन्त में उन्होंने कहा कि आज से मैं तुम्हें “समयसार भारिल्ल'' कहकर पुकारूँगाइसप्रकार का एक पत्र भी उन्होंने मुझे लिखा था, जिसमें उन्होंने मुझे बहुत-बहुत उत्साहित किया था। हमारे ऑफिस ने उनसे पूँछा कि यह पत्र हम प्रकाशित कर सकते हैं? उन्होंने अत्यन्त प्रसन्नता से स्वीकृति दे दी। यह स्वाध्याय सात दिन तक प्रतिदिन सुबह-शाम चला। इसकी वीडियो भी तैयार थी। जब उक्त वीडियो को टी.वी. पर प्रसारित करने की अनुमति चाही तो उन्होंने अत्यन्त उत्साह से स्वीकृति दी और वह वीडियो और वह वीडियो टी.वी. पर भी चला। आज भी हमारे ऑफिस से उसकी प्रति प्राप्त की जा सकती है। वह यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। इसप्रकार उनकी मुझपर अपार कृपा थी। आध्यात्मिकसत्पुरुष गुरुदेव श्री कानजीस्वामी का तो मुझे असीम वात्सल्य प्राप्त था ही; पर महाराज श्री का भी भरपूर वात्सल्य था। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है। सारा देश जानता हैस्वामीजी तो हमें अनाथ कर ही गये हैं और अब आचार्य श्री भी हम सबको छोड़कर चले गये; पर हमें दोनों का परोक्ष मंगल आशीर्वाद आज भी उपलब्ध है और सदा उपलब्ध रहेगा।
मत ठुकराओ, गले लगावो, धर्म सिखाओ